इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक बहुत ही बड़ा फैसला सुनाया है, जिसमें कहा है किे मृत्तक कर्मचारी की विवाहित बेटी भी अनुकंपा के आधार पर नौकरी का दावा कर सकती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने याचिकाकर्ता कविता तिवारी की याचिका पर यह बड़ा फैसला दिया है।
क्या था पूरा मामला
याचिकाकर्ता कविता तिवारी के पिता उत्तर प्रदेश राज्य सिंचाई और जल संसाधन विभाग में ड्राइवर के रूप में कार्यरत थे। कर्मचारी की साल 2019 में मौत हो गई। इसके बाद उनकी विवाहित बेटी ने अनुकंपा के आधार पर नौकरी का दावा किया।
विभाग ने किया दावा खारिज
अनुकंपा नियुक्ति के इस दावे को राज्य सिंचाई और जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने यह कहते हुए खारिज कर दिया किे आपके दो भाई सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं और आपकी मां को हर महीने पेंशन मिल रही है, इसके साथ कहा कि आप विवाहित है और मृत कर्मचारी के ऊपर निर्भर नहीं थी, इसलिए आपको अनुकंपा के आधार पर नौकरी नहीं दी जा सकती।
याचिकाकर्ता कविता तिवारी ने डाली कोर्ट में याचिका
राज्य सिंचाई और जल संसाधन विभाग की अस्वीकृति के बाद कविता तिवारी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका डाली। याचिकाकर्ता के वकील ने यह तर्क दिया कि 1974 के नियम अनुकंपा नियुक्ति पर कोई रोक नहीं लगाते हैं। यदि उसका भाई सरकारी नौकरी में है और मां पेंशन पा रही है तो भी अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति दी जा सकती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच मे शुरु हुवा मामला
याचिकाकर्ता के वकील ने हाईकोर्ट को पहले दिए गए फैसलो का हवाला दिया। उसके बाद अदालत ने कहा कि कुमारी निशा बनाम युपी राज्य और तीन अन्य के मामले में हाईकोर्ट ने माना था कि कर्मचारी के बेटे का सरकारी सेवा में होना या मां का पेंशन पाना अनुकंपा नियुक्ति पाने के लिए कोई बाधा नहीं है इसलिए विवाहित बेटी भी अनुकंपा नियुक्ति पाने की हकदार है।
क्या कहते हैं नियम
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि युपी रिक्रूटमेंट आफ डिपेंडेंट्स आफ गवर्नमेंट सर्वेंट डाईंग इन हार्नेस रूल्स 1974 के नियम 2(C) और नियम (5 ) के तहत ‘कुटुंब’ की परिभाषा यह तय नहीं करती की अनुकंपा नियुक्ति का दावा करने वाला व्यक्ति मृतक कर्मचारी के ऊपर निर्भर रहे। 1974 के नियम 2(C) में कुटुंब में पत्नी या पति, बेटे और दत्तक पुत्र, बेटियां और विधवा बहुएं, अविवाहित भाई, अविवाहित बहने और मृत सरकारी कर्मचारी पर निर्भर विधवा मां भी शामिल है।
इसके साथ नियम (5) में यह प्रावधान है कि परिवार का कोई एक सदस्य जो पहले से ही केंद्र सरकार या राज्य सरकार के तहत कार्यरत नहीं है उसे सरकारी सेवा में उपयुक्त तरीके से आवेदन करने पर यदि वह शैक्षणिक योग्यता पूरा करता है तो सामान्य भर्ती नियमों से छूट दी जाएगी।
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न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन की खंड पीठ ने दिया तोहफा
यह फैसला न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन की खंड पीठ ने दिया है। कोर्ट ने माना कि वर्ष 1974 के नियमों के तहत अनुकंपा नियुक्ति के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह मृतक कर्मचारी के ऊपर आश्रित हो। इसके साथ न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि मृतक कर्मी के पुत्र सरकारी सेवा में हैं तो अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती। पुत्र की जो आय होगी वो अपने पत्नी और बच्चों तक सीमित होगी।
अगर विवाहित बेटी का पति सरकारी सेवा में होता तो ऐसी स्थिति में अनुकंपा नियुक्ति देना उचित नहीं है लेकिन मां को पेंशन मिलना और भाई का सरकारी नौकरी में होना कोई ठोस कारण नहीं है की अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती। इस टिप्पणी के साथ लखनऊ बेंच ने याचिकाकर्ता के अनुकंपा नियुक्ति के दावे को खारिज करने का आदेश को रद्द कर दिया और अनुकंपा नियुक्ति देने का आदेश जारी किया।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को डाउनलोड करें
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