अगर आप सरकारी कर्मचारी हैं या पेंशनधारक है या किसी भी ऐसे संस्थान में काम करते हैं, जहां पर मेडिकल रिम्बर्समेंट की सुविधा मिलती है तो ये खबर आपके लिए बहुत ही खास होनेवाली है।
क्या होता है मेडिकल रिम्बर्समेंट
सबसे पहले बता दूं कि मेडिकल रिम्बर्समेंट क्या होता है। आपको बता दूँ कि जब कर्मचारी/लाभार्थी किसी हॉस्पिटल में अपना या अपने परिवार का इलाज कराता है तो जो भी खर्च होता है उस खर्च का भुगतान सरकार के द्वारा या नियोक्ता के द्वारा किया जाता है तो इसी को मेडिकल रिम्बर्समेंट कहा जाता है।
इसी को लेकर केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक आदेश जारी किया है कि कोई भी सरकार/नियोक्ता किसी भी कर्मचारी को उसकी पसंद के अस्पताल में इलाज कराने से नहीं रोक सकता है।
क्या कहाँ केरल हाईकोर्ट ने
केरल हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि अगर किसी कर्मचारी ने CGHS से असूचीबद्ध अस्पताल या किसी कंपनी के पैनल से बाहर के किसी दूसरे अस्पताल में इलाज करा लिया है तो उसके मेडिकल बिलों का भुगतान करने से इनकार नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी किस अस्पताल में इलाज कराएगा, यह उसका अधिकार है। इस अधिकार से कर्मचारी/पेंशनभोगी को वंचित नही किया जा सकता।
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क्या था पूरा मामला
इस मामले में राजीवन नाम के कर्मचारी, जो Food Corporation Of India (FCI) में कार्यरत थे वे अपनी ड्यूटी के दौरान घायल हो गए थे। उन्होंने अपनी पसंद के अस्पताल में अपना इलाज कराया, जिसका खर्च 35000 रुपये आया था। उन्होंने इस मेडिकल बिल के भुगतान के लिए Food Corporation Of India के आफिस में डॉक्यूमेंट जमा किए।
ऑफिस ने यह कहते हुए उनके बिलों का भुगतान करने से रोक दिया कि उन्होंने FCI के पैनल के अस्पतालों से इतर किसी अन्य अस्पताल में इलाज कराया है, इसलिए उनके खर्च का भुगतान नहीं किया जा सकता है।
CAT में डाली गई याचिका
राजीवन ने इसके खिलाफ CAT में अपील की, जहां CAT ने 12% ब्याज के साथ कुल भुगतान करने का आदेश जारी किया लेकिन Food Corporation Of India ने उस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी।
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केरल हाइकोर्ट में दी गई चुनौती
इस मामले की सुनवाई करते हुए जज जी. गिरीश ने आदेश दिया कि कर्मचारियों को यह अधिकार है कि वे अपनी मनपसंद के किसी भी अस्पताल में इलाज करवा सकते है, चाहे वह अस्पताल सरकार या नियोक्ता के पैनल में लिस्टेड हो या नहीं? केरल हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसे अस्पतालों में हुई खर्च की राशि का भुगतान करने से सरकार/नियोक्ता इनकार नहीं कर सकते।
जज जी. गिरीश का महत्वपूर्ण फैसला
इस मामले की सुनवाई करते हुए जज जी. गिरीश की पीठ ने कहा कि सरकारी संस्थानों द्वारा जारी सर्कुलर, जो कर्मचारियों को अपनी पसंद के अस्पताल में इलाज कराने से रोकता है तो ऐसे में यह मुआवजा अधिनियम की धारा 4(2ए) का उल्लंघन है। इस धारा का उल्लंघन करने पर कर्मचारी, मुआवजा पाने का हकदार हो जाता है। इसलिए कोर्ट, मेडिकल खर्च की भरपायी करने की अनुमति देता है।
The court judgement is very clear
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